मंगलवार, 22 दिसंबर 2009

मै बार बार लिखना चाहती हूँ

बहुत दिनों से लोगों को सुनती हूँ की वो ब्लॉग लिखते हैं, टीवी च्चान्नेल वाले भी बड़ी बड़ी हस्तियों के बारे में बताते हैं की फलां ने अपने ब्लॉग पर ये कहा वो कहा , मेरे कुछ बहुत आत्मीयों मित्रों के भी ब्लॉग हैं और वो काफी सफल भी हैं, मन में बहुत बार आता था की मै भी एक ब्लॉग बना लूँ और लिखूं, पढने का शौक हमेशा से रहा मुझे, कुछ भी पढ़ लेती हूँ, हिन्दी और उन्ग्रेज़ी में लिखा हुआ, बचपन में स्कूल के कोट में माँ को बहुत सारे पुर्जे भरे हुए मिलते, जिन्हें मै लैय्या चना खाने के बाद इस आशा में रख लेती की पढूंगी की इसपर क्या लिखा है, डांट
भीे पढ़ती थी जब माँ को जेब में कुछ फटे हुए कागज़ के टुकड़े मिलते, परन्तु लिखने की कभी नहीं सोची, हाँ दैरी
लिखने का शौक रहा और वो भी तब जब बड़े जो जाने की बड़ी जल्दी थी, कुछ ऐसे एहसास जिन्हें लोगों से कह न सकूँ उन्हें दैएरी
में लिखने का शौक हुआ था, लगभग ३, ४ साल ये शौक चला, पर जैसे जैसे बड़े होते गए मन पीछे भागने लगा.. की काश वो बच पण के दिन एक बार फिर से आजाते, जहाँ सिर्फ दोस्त ही आपका जीवन होते हैं, उनकी जिंदगी की हर ऊलजुलूल बात आपकी जिंदगी की सबसे महत्वपूर्ण बातों में से होती हैं.उससमय घर वालों का ये दवाब की पढ़ कर कुछ बन जाओ या ये सीख की पढाई ही सिर्फ एकमात्र जरिया है उस जन्दगी को पाने का जिसे हम जीना छाते हैं, ये दवाब और सीख दोनों ही कडवी दवाई जैसा लगता. पर फिर भी समय के तो पंख है वो उड़ जाता है, और एक दिन आप पते हैं की आप भी ज़िन्दगी की उस नाव में सवार हो गये हिं जहाँ सिर्फ आपके पास आप बचे हैं, वो दोस्त वो समय सब कहीं खो गया है, इसलिए नहीं क्युकी वो वैसा रहना नहीं छाहाथा
था , परन्तु इसलिए क्यूंकि ये नियति है , जीवन है , और जीवन किसी के लिए नहीं ठहरता, इसे तो बस चलना है, हाँ वो लोग जो इसकी सचियों
ं को अपनाकर अपने अनुसार जीने की कोशिश करते हैं वो शयेद सही मायनों में जीते हैं !!

p .s: पता नही ये मैंने क्यूँ लिखा, शायेद कुछ लिखना छाहती थी इसलिए, मालूम नहीं कोई इसे पढ़ेगा या नहीं, परन्तु अगर पढ़े तो कृपया कुछ न कुछ टिप्पड़ी ज़रूर करे , क्यूंकि मै बार बार लिखना चाहती हूँ .